Monday, December 19, 2011

दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्रः बूंद बूंद को तरसेंगे शहर


डीएमआईसी ने नदी के पानी के इस्तेमाल के लिए जो मानदंड तय किए हैं, वो सही हैं और अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के मानकों के मुताबिक ही हैं। यानी नदी साफ रहे और पर्यावरण सुरक्षित रहे इसके लिए जरुरी है कि नदी में कुल बहाव का आधा पानी बहने दिया जाए। आधे या इससे कम पानी का ही इस्तेमाल किया जाए।



स्कॉट विल्सन के दस्तावेज में बताया गया है कि दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र में पडने वाली नदियों में कुल कितना पानी है, और कुल कितने पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। केन्द्रीय जल आयोग के आँकडों के मुताबिक दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र में कुल 6 नदियां हैं। यमुना, चंबल, माही, साबरमती, नर्मदा और लूनी। इन छहों नदियो का कुल प्रवाह 134 क्युबिक मीटर है। सिद्धांततः इनमें से आधा यानी 67 अरब क्युबिक मीटर पानी इस्तेमाल किया जा सकता है।



लेकिन कठिनाई यह है कि दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र की इन 6 नदियों में से पहले ही 70 अरब क्युबिक मीटर पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तथ्य़ की अनदेखी दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र प्रपत्र में की गई है।



दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र परियोजना की रिपोर्ट लिखने वालों ने शायद यह मान लिया है कि पूरब की तरफ बहने वाली नदियों का पानी भी इस गलियारे के शहरों के लिए उपलब्ध है।



दस्तावेज में सुझाव दिया गया है कि अगर इंजीनियरिंग के जरिए मुमकिन हो पाए तो, पूरब की तरफ बहने वाली नदियों को 600 मीटर तक ऊंचा उठाकर उसका पानी दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र के नए बस रहे शहरों के लिए उपलब्ध कराया जाए। अगर इन नदियों का पानी 600 मीटर उठा दिया जाए तो गलियारे में बहुत दूर तक ले जाया जा सकता है।



दरअसल, पूरब की तरफ बहने वाली नदियों गोदावरी और कृष्णा का पानी का बंटवारा महाराष्ट्र और आंध्र् प्रदेश के बीच होता है। इऩ राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर झगडा है, दोनों ही राज्यों में किसान सिंचाई की जरुरतो के लिए पानी की कमी से आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र के लिए दोनों  में से कोई भी राज्य पानी छोड़ेगा, इसकी दूर-दूर तक संभावना भी नहीं है।



दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र परियोजना में जिस तरह से संसाधनों और संभावनाओं को लेकर पूर्वानुमान लगाए गए हैं, उस पर पुनर्विचार की जरुरत है। इन तथ्यों का सत्यापन बहुत सावधानी से करना होगा, और उनका मिलान जमीनी हकीकत से भी कराना होगा।



दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र में शहरों का विकास या उनकी स्थापना की कहानी में कोई नई बात होनी चाहिए, इन शहरों को आकार में छोटा होना चाहिए और साथ ही हरा-भरा भी। पर्यावरण से छेड़छाड होगी, तो दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा क्षेत्र पीने के पानी को बूंद-बूंद तरसती आबादी से भरे भीड भाड़ वाले इलाके से ज्यादा कुछ नहीं होगा।


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