Sunday, February 11, 2018

ये जो देश है मेरा की गौरव झा की समीक्षा

आज सुबह ही यह किताब पढ़कर खत्म की, तो सोचा दो-चार लाइनें लिख दी जाएं इस किताब के बारे में, जिसे हमारे मामा ने लिखा है। यह देश के जमीनी हकीकत की कहानियां हैं, जो उन्हें पत्रकारिता के दौरान अनेक जगह में किये गए यात्राओं से मिली हैं। उन जानकारियों, अनुभवों को उन्होंने बहुत रिसर्च के बाद किताब की शक्ल दी है।

इस किताब में भारत के पांच हिस्सों और वहां के लोगों का दर्द ए हाल बयां किया गया है। बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश/उत्तरप्रदेश) के लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं, कूनो पालपुर (मध्य प्रदेश) के सहरिया जनजाति पर अभ्यारण्य की वजह से  विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है, नियामगिरि (ओडिशा) के डंगरिया-कोंध जनजाति पर बॉक्साइट खनन के लिए विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है, सतभाया पंचायत (ओडिशा) के लोगों को बढ़ते समंदर का खतरा परेशान किये हुए है, लालगढ़ (पश्चिम बंगाल) के लोगों को नक्सलियों-पुलिस-राजनीतिक पार्टी के कैडर का खतरा हमेशा परेशान करता रहता है।

आपको पढ़कर यह भी पता चलेगा कि ऐसा नही है कि इन परेशानियों के निपटारे के लिए सरकारों ने प्रयास नही किये। ढेरों प्रयास किये गए और किये जा रहे हैं। बजट आवंटित किए जा रहे हैं, स्थानीय लोग भी प्रयास कर रहे हैं। पर एक चीज की कमी हर जगह दिख रही है वह है उन योजनाओं के क्रियान्वयन में कमी, लापरवाही, लूट-खसोट, अनियमितता।

उन जगहों के इतिहास, भूगोल, वर्तमान और भविष्य के बारे में काफी विस्तार से चर्चा की गई है।

आमलोगों से बातचीत करके उनकी समस्या को सामने रखने का बेहतरीन प्रयास आपको किताब में दिखेगा। हर इलाके के परेशानियों को आंकड़ों सहित दर्शाने के कारण उसे समझना आसान हुआ है, कई बारीक जानकारियां मिलेंगी आपको उन जगहों के बारे में, परिस्थिति के बारे में इस किताब को पढ़कर।

साथ में यह भी पता चलता है कि लेखक ने इसके लिए कितनी मेहनत की होगी।

एक बार जब आप किताब पढ़ना शुरू कीजियेगा तो आपको उन क्षेत्रों के बारे में जानने की इच्छा इतनी बढ़ जाएगी कि बिना खत्म किये किताब छोड़ना मुश्किल होगा। आपके भी जेहन में ये सवाल आएगा कि विकास के मायने सबके लिए एक ही पैमाने से तय किये जा सकते हैं क्या??

बेहतरीन किताब को लिखने के लिए मामा जी को बधाई। जय हो,शुभ हो।

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